उत्तराखण्ड के ‘माननीयों’ को ‘चिट्टी पढ़ने’ तक की ‘फुर्सत’ नहीं

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सूबे के विधायकों के सरकारी आवास के सामने चिटिठ्यों के लगे ढेर, चिट्टियों के बंडल में सरकारी गैर सरकारी दोनों ही पत्र शामिल
देहरादून। अगर आप उत्तराखंड के किसी विधानसभा क्षेत्र के किसी सुदूर इलाके में रहते हैं और  चिटठी-पत्री के द्वारा अपने क्षेत्र की समस्याएं क्षेत्रीय विधायक तक पहुंचाकर, समस्याओं के निदान का मुगालता पाले हुए हैं, तो इस मुगालते से तत्काल बाहर निकल आइए ,क्योंकि उत्तराखंड के अधिकांश विधायक अपने आवास पर आने वाले पत्र-पत्रावलियों को पढ़ने और समय रहते पत्र का उत्तर देने अथवा उस पर कोई एक्शन लेने के प्रति कतई गंभीर नहीं है। वह इसलिए क्योंकि माननीयों के राजधानी वाले आवास के पते पर जो भी चिटठी पत्री पहुंचती है, वह अरसे तक विधायकों के दरवाजे पर ही लटके पड़े धूल खाती रहती हैं और वहां चिटठी- पत्री की सुध लेने वाला कोई नहीं रहता। बताना होगा कि सूबे की राजधानी देहरादून के रेस कोर्स स्थित ट्रांसिट हॉस्टल अर्थात विधायक आवास, जहां उत्तराखंड के तकरीबन सभी विधायकों के लिए आवास आवंटित है, में इन दिनों बड़ा ही अजीब नजारा देखने को मिल रहा है ।ट्रांसिट हॉस्टल स्थित तकरीबन सभी विधायकों के आवास के दरवाजे पर लगे लेटर बॉक्स में और जिस आवास में लेटर बॉक्स की व्यवस्था नहीं है ,वहां पत्र-पत्रावली रखने के लिए नियत स्थान में दर्जनों की संख्या में चिटठीी-पत्री, सरकारी दस्तावेज, लटके-धूल खाते विधायकों का इंतजार कर रहे हैं। हैरत की बात तो यह है कि विधायक आवास में पहुंचने वाले पत्र पत्रावलियों को विधायकों की अनुपस्थिति में सहेज कर रखने अथवा पत्रों को संबंधित विधायकों तक पहुंचाने की व्यवस्था करने के लिए ना तो सरकार द्वारा किसी कर्मचारी की नियुत्तिफ ही की गई है और ना ही उत्तराखंड के माननीयों ने ही इसकी जरूरत महसूस की है। पत्र-पत्र वालियों के विधायक आवास के सामने लंबे समय से धूल खाते पड़े रहने के पीछे का सामान्य कारण यह बताया जा रहा है कि माननीय अपने निर्वाचन क्षेत्र के भ्रमण पर हैं, जिस कारण उनके नाम से विधायक आवास पर पहुंचे पत्र उनके निवास स्थान के बाहर टंगे हुए दिख रहे हैं। गौरतलब है कि इनमें कई ऐसे पत्र हैं, जिनके फ्रंट पेज पर उत्तराखंड सरकार का लोगो भी है। जबकि बाकी कुछ ऐसे पत्र हैं, जो कि माननीय के क्षेत्र की जनता की ओर से भेजे गए हैं। उत्तफ पत्र लंबे समयसे टंगे प्रतीत होते हैं। कईयों पर धूल जमी हुई है,तो कई आड़े-तिरछे टंगे हुए नजर आ रहे हैं। हो सकता है कि माननीय अपने निर्वाचन क्षेत्र के विकास के सिलसिले में सचमुच ही क्षेत्र भ्रमण पर हों। लेकिन अच्छा होता ? जो अगर उत्तफ पत्र पत्रावलियां समय रहते माननीयों तक पहुंच जाते। हो सकता है कि पत्र-पत्रावलियों के समय से विधायकों के हाथ पड़ जाने पर किसी जन समस्या का कोई हल निकल आता अथवा जनहित संबंधी कोई सरकारी कार्य समय रहते गति पकड़ लेता। यद्यपि देखा जाए तो पत्र-पत्रावलियों के विधायक आवास के सामने लंबे समय तक टांगे रहने के पीछे दिया जाने वाला, विधायकों के क्षेत्र भ्रमण वाला तर्क, पूरी तरह निराधार नहीं मालूम होता, क्योंकि जिन विधायकों के आवास के बाहर ये सरकारी दस्तावेज, विधानसभा क्षेत्र से आई चिट्टिखयां नजर आ रहे हैं,उनमें अधिकतर विधायक वे हैं,जिनके विधानसभा क्षेत्र देहरादून से काफी दूर हैं। शायद इसीलिए उनका इस संबंध में तर्क रहता है कि वे अधिकतर समय क्षेत्र दौरे पर रहते हैं और विधायक आवास पर उनका कोई भी स्टॉफ नहीं रहता है। इस कारण चिट्टखी-पत्र उनके आवास के बाहर रख दिए जाते है। यहां पर यह बताना आवश्यक है कि स्थानीय विधायकों या फिर दून के आसपास के विधानसभा क्षेत्रों के विधायक आवास के बाहर ऐसा नजारा आमतौर पर नजर नहीं आता है। कारण कि, उनका अपने आवास पर जाना-जाना लगा रहता है। उनकी उपस्थिति में उनका स्टाफ उनके क्षेत्रों या फिर सरकारी दस्तावेजों को विधायक तक पहुंचा देते हैं।

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