2024 के चुनावी महासंग्राम में अब दो दिन शेषः स्टार प्रचारकों की धमक के बीच उत्तराखंड में नये चेहरों ने गरमाया चुनावी माहौल

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तो क्या तीसरी बार राजनीति की परिपाटी तोड़कर फिर नया इतिहास बनायेंगे उत्तराखंड के मतदाता, पांच लोकसभा सीटों पर प्रत्याशियों ने झोंकी ताकत
देहरादून;उद ब्यूरोद्ध लोकतंत्र के महापर्व में मतदाताओं के मतदान से मिलने वाला आशीर्वाद सियासी दलों का भाग्य बदल देता है। भाजपा और कांग्रेस के स्टार प्रचारकों की धमक के बीच उत्तराखंड की पांचों लोकसभा सीटों पर चुनावी प्रचार का अंतिम चरण शुरू हो गया है। अब चुनावी समर में प्रचार अभियान के लिए सिर्फ दो दिन शेष हैं। चुनावी घोषणा पत्र जारी होने के बाद अब कांग्रेस और भाजपा अपने अपने दलों के के घोषणा पत्रों के साथ कार्यकर्ता अब जनता के बीच पहुंच रहे है। भाजपा कार्यकर्ता जहां संकल्प पत्र में मोदी की गारंटियों को लेकर बेहद उत्साहित है तो वहीं कांग्रेस ने भी न्याय की गारंटियों को लेकर चुनावी माहौल को गरम कर दिया है। बहरहाल अब चुनावी समर में प्रचार अभियान के लिए सिर्फ दो दिन शेष हैं। आगामी 19 अप्रैल को प्रदेश में पहले चरण में पांच सीटों पर मतदान होगा जबकि मतदान के नतीजे 4 जून को घोषित होगे।पांच लोकसभा सीट वाले उत्तराखंड के लगभग 82.48 लाख से अधिक मतदाता अपने सक्रिय भूमिका से कई मायनों में अपनी अलग पहचान रखते हैं। इस बार कई नेये चेहरों पर भी राष्ट्रीय दलो ंने दांव खेला है और उनकी सक्रियता से चुनावी महौल भी गरमाया हुआ है। बीते दो चुनावों 2014 और 2019 में भाजपा के सभी उम्मीदवारों को संसद भेजा है। 2009 में ऐसा ही मौका कांग्रेस को दिया था। राज्य गठन से पहले और बाद में कई बार ऐसे मौके भी आए, जब मतदाताओं ने अपनी गढ़ी परिपाटी को एक झटके में तोड़ा भी है। छोटे राज्य की राजनीतिक सोच और नजरिया लंबे समय से दो दल भाजपा-कांग्रेस के करीब ही रहा है। क्षेत्रीय दलों की अपेक्षा राज्य गठन के बाद 2004 में हरिद्वार से समाजवादी पार्टी के सांसद को भी संसद पहुंचाया। एक समय ऐसा भी था जब यहां के मतदाता राज्य में एक दल की सरकार बनाते और सांसद दूसरे दल का चुनकर भेजते। 2002 में राज्य में कांग्रेस की सरकार थी, लेकिन पांच में तीन सांसद भाजपा के जीते। 2009 में भाजपा की सरकार बनी, लेकिन उसके सभी सांसद उम्मीदवार हार गए। 2014 में राज्य में कांग्रेस की सरकार थी, बावजूद उसके उसका कोई भी उम्मीदवार नहीं जीत सका। मोदी के मैजिक से मतदाताओं का मिजाज भांपने में भाजपा कुछ मायनों में आगे रही है। शायद यही कारण है कि लोगों ने अपनी बनाई रणनीति और परंपरा को तोड़ना बेहतर समझा। राज्य में पांच-पांच साल का फार्मूला भाजपा को जिताकर तोड़ा। 2019 में भाजपा के पांचों सांसदों को पुनः जिताकर भेजा, जबकि राज्य में भाजपा की सरकार थी। पौड़ी लोकसभा लोकसभा क्षेत्र में आने वालीं 14 विधानसभा सीटों में भाजपा के पास 13 हैं। कांग्रेस के पास एक मात्र बदरीनाथ सीट है। इस लोकसभा सीट में एक विधानसभा नैनीताल जिले की रामनगर भी शामिल है। इस सीट पर कांग्रेस ने भाजपा से पहले अपने उम्मीदवार गणेश गोदियाल की घोषणा की थी। भाजपा ने इस सीट पर इस बार तीरथ सिंह रावत की जगह राज्यसभा सांसद रहे अनिल बलूनी को उम्मीदवार बनाया है। लोकसभा के जातीय गणित और मतदाताओं के ब्राहमण-ठाकुर फार्मूले में यहां ठाकुर मतदाता निर्णायक माने जाते हैं। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही उम्मीदवार ब्राहमण हैं। टिहरी लोकसभा लोकसभा क्षेत्र की 14 में से दो विधानसभा सीट कांग्रेस के पास हैं। इस लोकसभा क्षेत्र की आधी यानि 7 सीट देहरादून जिले में आती हैं। पहाड़ के साथ देहरादून के मतदाता भी निर्णायक की भूमिका में रहते हैं। देहरादून में मिश्रित आबादी और यूपी के सहारनपुर जिले से सटे होने के कारण विकासनगर, सहसपुर, कैंट का कुछ हिस्सा, राजपुर और रायपुर मुस्लिम आबादी का भी प्रतिनिधित्व करते हैं। हालांकि शहरी आबादी का फायदा भाजपा को ही मिलता रहा है। भाजपा ने यहां राजघराने पर भरोसा जताते हुए फिर से माला राज्यलक्ष्मी को उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस ने टिहरी में वरिष्ठ नेता और मसूरी के पूर्व विधायक जोत सिंह गुनसोला को आजमाया है। हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र की 14 विधानसभा क्षेत्रों में से भाजपा के पास मात्र छह विधानसभा क्षेत्र हैं। जबकि अन्य आठ में कांग्रेस के पास पांच, दो बसपा और एक निर्दलीय विधायक जीतकर पहुंचे। भाजपा ने हरिद्वार में भी बदलाव किया है। दो बार के सांसद रमेश पोखरियाल निशंक की जगह पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को उतारा है। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के कद्दावर नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के पुत्र वीरेंद्र सिंह रावत को कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बनाकर चुनावी रण में उतारा है। वर्ष 2009 के चुनाव में हरीश रावत चुनाव जीत चुके हैं और यहां कांग्रेस को सियासी समीकरण का लाभ मिल सकता है। परिसीमन के बाद इस लोकसभा क्षेत्र का भी राजनीतिक मिजाज बदला है। यहां आने वाले ऋषिकेश, धर्मपुर और डोईवाला विधानसभा क्षेत्रों में पहाड़ी मतदाता निर्णायक माना जाता है, जहां भाजपा खुद को सहज मानती है। जबकि हरिद्वार की मैदानी सीटों पर अल्पसंख्यक और दलित मतदाता बड़ा फैक्टर बनता है। इस वोट बैंक को साधने के लिए भाजपा कांग्रेस के अलावा सपा, बसपा, और निर्दलीय भी जोरआजमाइश करते हैं। अल्मोड़ा -पिथौरागढ़ लोकसभा सीट राज्य की सुरक्षित लोकसभा सीट पर इस बार भाजपा कांग्रेस ने टम्टा बिरादरी से चिर प्रतिद्वंद्वी उतारे हैं। भाजपा के अजय टम्टा तीसरी बार से मैदान में हैं, जबकि राज्यसभा सांसद रहे प्रदीप टम्टा पर कांग्रेस ने पुनः भरोसा जताया है। बड़े क्षेत्रफल वाली इस सीट पर भाजपा दोनों चुनाव जीती है, लेकिन पांचों में जीत का अंतर सबसे कम रहा है। इस लोकसभा क्षेत्र में भाजपा के नौ विधायक हैं, जबकि कांग्रेस के पांच विधायक जीतकर आए हैं। नैनीताल- ऊधमसिंह नगर लोकसभा सीट मैदानी और पहाड़ी इलाके का प्रतिनिधित्व करती है। दो बड़े जिले नैनीताल और ऊधमसिंह नगर इस लोकसभा के तहत आते हैं। भाजपा ने एक बार फिर केंद्रीय राज्य मंत्री अजय भट्ट को उम्मीदवार बनाया है। जबकि कांग्रेस अभी तक इस सीट पर भी उम्मीदवार तय नहीं कर पाई है। इस सीट के लिए कांग्रेस युवा उम्मीदवार प्रकाश जोशी पर दांव खेल चुकी है। प्रकाश जोशी दो बार विधानसभा का चुनाव भी लड़ चुके है हांलाकि वह चुना नहीं जीत पाये हैं लेकिन जनता के मुद्दों पर अपनी सक्रियता से पार्टी में अपनी पैठ जमायी हुई है। नैनीताल सीट कभी कांग्रेस का गढ़ था, लेकिन भाजपा ने जब से जीत दर्ज कराई है तब से कांग्रेस के दिग्गज भी वापसी नहीं करा सके हैं। लोकसभा क्षेत्र की 14 सीटों में यहां भी नौ भाजपा के पास और पांच कांग्रेस के पास हैं।

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