हरिद्वार जमीन घोटाले में दो आईएएस एक पीसीएस समेत 10 निलंबित: 15 करोड़ की जमीन को 54 करोड़ में खरीदने का मामला
देहरादून(उद संवाददाता)। हरिद्वार जमीन घोटाले में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सख्त एक्शन लिया है। जांच रिपोर्ट में दोषी पाए जाने पर हरिद्वार के डीएम कर्मेंन्द्र सिंह, एसडीएम अजयवीर सिंह और पूर्व नगर आयुक्त वरुण चौधरी समेत 10 अधिकारियों को सस्पेंड कर दिया गया है और दो का सेवा विस्तार समाप्त कर दिया है। साथ ही सीएम धामी ने मामले की विस्तृत जांच सतर्कता विभाग से कराये जाने के निर्देश दिये हैं। इसके अलावा भूमि घोटाले से सम्बंधित विक्रय पत्र को भी निरस्त करते हुए भू स्वामियों को दी गयी धनराशि की रिकवरी सुनिश्चित करने के भी सख्त निर्देश दिये हैं। धामी सरकार के इस सख्त एक्शन से नौकरशाही में हड़कम्प मचा हुआ है। उत्तराखंड में पहली बार ऐसा हुआ है कि सत्ता में बैठी सरकार ने अपने ही सिस्टम में बैठे शीर्ष अधिकारियों पर सीधा और कड़ा प्रहार किया है। हरिद्वार जमीन घोटाले में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा लिए गए निर्णय केवल एक घोटाले के पर्दाफाश की कार्रवाई नहीं, बल्कि उत्तराखंड की प्रशासनिक और राजनीतिक संस्कृति में एक निर्णायक बदलाव का संकेत हैं। बता दें हरिद्वार नगर निगम द्वारा कूड़े के ढेर के पास स्थित अनुपयुक्त और सस्ती कृषि भूमि को 54 करोड़ रुपये में खरीदने के मामले ने राज्यभर में हलचल मचा दी थी। न तो भूमि की वास्तविक आवश्यकता थी, न ही पारदर्शी बोली प्रक्रिया अपनाई गई। शासन के स्पष्ट नियमों को दरकिनार कर एक ऐसा सौदा किया गया जो हर स्तर पर संदेहास्पद था। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच कराई । जांच में हरिद्वार दो आईएएस और एक पीसीएस अधिकारी समेत एक दर्जन अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध पाई गयी। रिपोर्ट मिलते ही तीन बड़े अफसरों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की। जांच में हरिद्वार के जिलाधिकारी कर्मेन्द्र सिंह की भूमिका भूमि क्रय की अनुमति देने और प्रशासनिक स्वीकृति देने में संदेहास्पद पाई गई। इसके अलावा पूर्व नगर आयुक्त वरूण चौधरी ने बिना उचित प्रक्रिया के भूमि क्रय प्रस्ताव पारित किया और वित्तीय अनियमितताओं में प्रमुख भूमिका निभाई। जबकि एसडीएम अजयवीर सिंह ने जमीन के निरीक्षण और सत्यापन की प्रक्रिया में घोर लापरवाही बरती गई, जिससे गलत रिपोर्ट शासन तक पहुंची। इन तीनों अधिकारियों को वर्तमान पद से हटा दिया गया है और शासन स्तर पर आगे की विभागीय और दंडात्मक कार्यवाही प्रारंभ कर दी गई है। इसके साथ ही निकिता बिष्ट (वरिष्ठ वित्त अधिकारी, नगर निगम हरिद्वार), विक्की (वरिष्ठ वैयक्तिक सहायक), राजेश कुमार (रजिस्ट्रार कानूनगों), कमलदास (मुख्य प्रशासनिक अधिकारी, तहसील हरिद्वार को भी जमीन घोटाले में संदिग्ध पाए जाने पर तुरंत प्रभाव से निलंबित किया है। जांच अधिकारी नामित करने के बाद इस घोटाले में नगर निगम के प्रभारी सहायक नगर आयुक्त रविंद्र कुमार दयाल, प्रभारी अधिशासी अभियंता आनंद सिंह मिश्रवाण, कर एवं राजस्व अधीक्षक लक्ष्मीकांत भट्ट व अवर अभियंता दिनेश चंद्र कांडपाल को प्रथम दृष्टया दोषी पाए जाने पर निलंबित कर दिया गया था। संपत्ति लिपिक वेदवाल का सेवा विस्तार भी समाप्त कर दिया गया था। सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें सेवा विस्तार दिया गया था। उनके खिलाफ सिविल सर्विसेज रेगुलेशन के अनुच्छेद 351(ए) के प्रावधानों के तहत अनुशासनिक कार्रवाई के लिए नगर आयुक्त को निर्देश दिए गए थे। अब इस पूरे मामले की जांच विजिलेंस विभाग को सौंपी गई है। मुख्यमंत्री ने पूरे प्रकरण की विस्तृत जांच सतर्कता विभाग से कराए जाने के निर्देश दिए हैं ताकि दोषियों की पूरी श्रृंखला का खुलासा हो सके और पारदर्शिता बनी रहे। इसके अतिरिक्त, उक्त भूमि घोटाले से संबंधित विक्रय पत्र को निरस्त करते हुए भूस्वामियों को दिए गए धन की रिकवरी सुनिश्चित करने के सख्त निर्देश भी दिए हैं। मुख्यमंत्री ने तत्कालीन नगर आयुक्त वरुण चौधरी के कार्यकाल के दौरान नगर निगम हरिद्वार में हुए सभी कार्यों का विशेष ऑडिट कराए जाने के निर्देश भी दिए हैं ताकि वित्तीय अनियमितताओं की समुचित जांच की जा सके। मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि राज्य सरकार भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति पर दृढ़ता से कार्य कर रही है और किसी भी स्तर पर भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।